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Palak Inde

Abstract Drama Tragedy

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Palak Inde

Abstract Drama Tragedy

आवाज़

आवाज़

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वो बड़ी महफिलों में शरीक हुआ करते थे

हम अकेले में खुद से ही बातें करते थे

उन्हें उस महफ़िल से तालियाँ मिलती थीं

हमें चारों ओर से, बस तनहाइयाँ मिलती थी


वो उन सब को देखकर 

मुस्कुरा दिया करते थे

हम अपना ही हाल देखकर

कभी हँसते, तो कभी रो दिया करते थे


उनकी ज़िंदगी उनके फैसलों पर चलती थी

हमारी ज़िंदगी की डोर

नजाने किसकी उँगलियों में फँसी थी

सुना है, वो अपनी ज़िन्दगी में मशरूफ हैं


हम भी ज़िंदगी जीने को, थोड़े से मजबूर हैं

वो कहते हैं कि अब हमारी मुस्कान

उन्हें दिखाई नहीं पड़ती

शायद वो भूल गए हैं

कब्र के आर पार, आवाज़ें सुनाई नहीं पड़ती।


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