STORYMIRROR

Amit Kori

Romance

5.0  

Amit Kori

Romance

फ़िर वही बात

फ़िर वही बात

2 mins
470


कई बार सिर्फ़ एक ताल में डूबना अखरता है, एक ही रस में सब कुछ बेरंग सा लगता है उसे समझाने के लिए कुछ लिखना भी कम लगता है, इसलिए कुछ बेतुका सा लिखा हर शब्द को उसकी मंज़िल से दूर करके देखा, लेक़िन ये कहीं न कहीं वहीं बात दोहराते जो मैं पहले भी कई बार लिख चूका हूँ, शायद इन्हें अलग़ करना मुश्किल है...


यही वज़ह है की बात अब भी वहीं पर आकर अटकी है जहाँ से शुरुवात की थी...


फ़िर वहीं बात...


इस बार कहूँगा उस बार की तरह

जिस बार न कह पाया था इस बार

की तरह,


तरीक़े कई है कहने के पर कहने के

लिए थोड़े ही कहना है,


हमें तो तेरी बाहों में रहना है

जुल्फ़ों की गर्माहट में ठंड शाम

को सहना है,


वक़्त को गुज़रते देख उसकी हर सांस में बहना है,


ठहरने को न कोई पल हो, न कोई

ठि

काना, बस चलते रहना है,


रास्ता भी ग़ुमनाम हो, बस सड़क किनारें

एक फ़ूल की दुकान हो,


ख़ुशबू से महका सारा जहाँ हो

हर रास्ते की मंज़िल तुम्हारा मकान हो


ये वहीं शाम है, जो कभी ढल रही थी

हवाओं में एक चुभन थी, जो ये चुप - चाप सह रही थी,


अब धीमीं सी हो गयी है रफ़्तार इसकी

शायद हवाओं का रूख़ बदल गया है


हम और तुम है यहाँ, सर्द शाम की

धुंध है जहाँ


बैठ साथ की आज आट में, तेरा हाथ

मेरे हाथ में


बतलाओं न शब्द प्रीत के, गाओं न कुछ लफ़्ज़ गीत के


आज मुक़म्मल हो जाने दो, रह गए बाक़ी जो नज़्म गीत के


घुल गए सारे लफ़्ज़ रात में

फ़ीकी पड़ गयी क़लम हाथ में


श्यामल कर गयी आसमान वो

बोली निर्मल, नर्म ज़बान वो


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance