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Amit Kori

Abstract

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Amit Kori

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इस बार हमारी बारी हैं

इस बार हमारी बारी हैं

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हम सत्य जानते हैंं और

झूठ का विरोध भी करते हैं,

सहम जाते हैं , कभी - कभी 

पर चुप रहने से डरते हैं 


कुछ आते हैं, 

धमकाने के लिए 

तो कुछ जान लेने की 

हिमाक़त (वक़ालत) करते हैं


और हम अगर 

सड़कों पर आ जाए 

तो हमें देशद्रोही की 

ज़बान कहते हैं 


ख़ामोशी में (से) आग लगाकर, 

उँजियारे में धुँआ उठाते हैंं

और जो पढ़ ले इनके मंसूबों को, 

ये अनपढ़ उसे बताते हैं


जान हलक़ में आ जाती हैं,

चिल्ला-चिल्लाकर

फ़िर भी ये नहीं सुन पाते हैं, 

जब बदलाव की धुन गूँजे हर ओर

तब ये बहरे बन जाते हैं


पता हैं इस बार चिल्लायेंगे नहीं दहाड़ेंगे

कुछ ऐसा कि तुम्हारा

प्रशासन तक हिला डालेंगे,

आवाज़ या तलवार से नहीं,


सिर्फ़ धारदार शब्दों से लताडेंगे 

सुधर (संभल) जाओ हम कहते हैं,

वरना, तुमको दिखलायेंगे 

किसे कहते हैं , लोकतंत्र,

ये फ़िर से तुम्हें सिखलायेंगे 


हम लोकतंत्र हैं आज का 

जिस पर हमको अभिमान है,

ऊँच-नीच का भेदभाव जहाँ न 

मक़सद जिसका सम्मान है,


वो भूल गए इस बात को 

कुछ नाज़ुक़ से हालत को, 

कि संघर्ष अभी भी ज़ारी है

 इस बार हमारी बारी है।

हम आज़ाद है।


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