STORYMIRROR

AVINASH KUMAR

Romance

4  

AVINASH KUMAR

Romance

तू ही मेरी

तू ही मेरी

2 mins
433

तू ही मेरी हेलमेट, तू ही मेरी सोलमेट

तू ही मेरी जिद, तू ही मेरा वजूद

शुरूवात कुछ इस कदर हुई थी

हमारी तुम्हारी.......


तुम कौन थी ? ख़बर ना थी

पर, उसकी आँखे ख़ास थी

उन आँखो की गहराई में

कुछ राज़ दफ़न से थे

किसी राज़ की तलाश थी,


एक कहानी की आग़ाज़ वो

किसी अंज़ाम का क्यास थी

ज़रा धूप-सी सुनहरी,

उसके तन की मिट्टी में

कुछ बनने की प्यास थी,


उसमें सरगम की झनकार थी

वो कोई कला का मूर्तरूप थी,

कृति थी, थी अनूठी कोई रचना

या महान कोई कलाकार थी

वो अधूरी-सी पर साकार थी,


उसने मुझे राह बता,

भटकाया मेरी चाह का रास्ता दिखाया

मैं जिस मंज़िल की ओर था

वो रास्ता ही कोई और था

अंधेरा ही उस दूजे छोर था,


वजूद यूँ तो मिलता नहीं है

आँखें बंद हो तो रोशनी है

रंगीन ख़्वाब भी बड़े हसीं हैं पर,

दिन तो खुली आँखों में हैं

वो मुझसे अक्सर कहती रही,


वो कोई सपना नहीं थी

थी वजूद ख़्वाबों का मेरे

वो नन्ही तितली-सी थी

सपना बन जन्मी मगर

चाहत बन उड़ती फिरी,


कोशिश जो उसने करी

वो खुद की तलाश में

दुनिया में गुमनाम थी

खुद को बनाया था, पर

औरों में बदनाम थी,


कामयाबी की अज़नबी राहों पर

सवाल होते हैं पनाहों पर

ये दर वो दर होता है

ना कोई हमसफ़र होता है

हाँ, एक वजूद मगर होता है,


बस हैं सब कुछ यही ज़िन्दगी

थोड़ी-थोड़ी ग़ुलामी ख़्वाबों की

थोड़ी-सी आज़ादी, आवारगी

कुछ बचता नहीं सब बह जाता है

एक वजूद ही बाकी रह जाता है,


वो मेरा वजूद बन रही संग

उसकी आँखों में मेरी ही तस्वीर थी

वो मेरी नियती, मेरी तक़दीर थी

वो मेरे ज़हन की ज़ुस्तज़ु थी

मेरी कोशिशों की ताबीर थी।


अब जाकर पता चला

तू ही मेरी हेलमेट

तू ही मेरी सोलमेट थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance