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AVINASH KUMAR

Romance

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AVINASH KUMAR

Romance

परिप्रेक्ष्य, नज़रिया या व्यू

परिप्रेक्ष्य, नज़रिया या व्यू

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कितना मायने रखता है ये ?

क्योंकर मायने रखता है ये ?

क्या मायने रखता है ये ?


क्यों कि, हम जन्मजात, दुराग्रह ग्रस्त हैं।

क्यों कि, हम परंपरागत पूर्वाग्रह त्रस्त हैं।

हम अवधारणों की छाया में ही मस्त हैं।


हमें केवल हमारा ही तरीका पसंद है।

नई सोच हमारे लिए बस एक छंद है।

नए तरीकों के लिए हमारे पट बंद हैं।


ना जाने, किस भूल की सज़ा पा रहे हैं ?

क्यों, अपनी ही भूलों को, दोहरा रहे हैं ?

क्यों नहीं थोड़ा सा हटके देख पा रहे हैं ?


ये संसार, क्षण भंगुर, हमेशा, से ही था।

ये जीवन नश्वर, आज नही, सदा से था।

असुरक्षितता का भय सताता हमेशा था।


हम कल भी जीवित रहे, आज भी ह

ैं ना ?

हम कल जो बोए रहे, आज काटे रहे ना ?

कल से आज और कल में कुछ सीखे ना ?


क्यों है मन के द्वार पे लगी, ना बदलने की सांकल ?

क्यों नही लहराता है, बुद्धि पर, शिक्षा का आंचल ?

क्यों नही है कल से आज व आज से अच्छा कल ?


नज़रिया या परिप्रेक्ष्य, आपकी नज़रों के खेल हैं।

जो चला वही पहुंचा, ये जीवन साहस की रेल है।

वरना, आप ही जेलर हैं, ये आप ही की जेल है।


फैसला, हम सभी के हाथ है, हमें परिप्रेक्ष्य समझना है।

नज़रिये को ऊंचा रख हमें नए आसमानों पर उड़ना है।

लीक से हट कर जीवन में हमें नए रास्तों पर चलना है।

कुमार तुझको सोच ले इस दुनिया से क्या करना है

सोच को बदलना है तभी जीवन बदलेगा ये सोचना है।


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