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AVINASH KUMAR

Romance

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AVINASH KUMAR

Romance

विरह की अग्नि

विरह की अग्नि

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 लंबी और खामोश हो चलीं,

तेरी यादों की परछाई भी धुंधली सी लगीं।

आसमान से तारे भी पूछते हैं सवाल,

तेरे बिना क्यों अधूरी सी है हर चाल।


तेरी बातों का संगीत अब मौन हुआ,

दिल का हर कोना वीरान हुआ।

जिन राहों पर चलते थे साथ-साथ,

वो राहें अब लगती हैं अजनबी की तरह।


तेरे बिना वक्त ठहर गया है,

हर खुशी का रंग उतर गया है।

तेरी झलक को तरसे ये नयन,

तुझसे मिलने की चाहत बनी है अगन।


पर विरह भी तो प्रेम की भाषा है,

जहां हर आंसू में छुपी एक आशा है।

कि फिर मिलेंगे किसी रोज, किसी पल,

जहां खत्म होगा ये विरह का जल।


तब तक तेरी यादों में जी लूंगा,

तेरे बिना अधूरा सही, पर तुम्हारा ही रहूंगा।

इस विरह को भी प्रेम मानकर,

तेरे लौटने तक प्रतीक्षा करूंगा।



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