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आकिब जावेद

Romance

5.0  

आकिब जावेद

Romance

छोड़ दे

छोड़ दे

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ऐ मेरे दोस्त तू मेरा दिल दुखाना छोड़ दे

लब पे मेरे नाम को अब दबाना छोड़ दे

दिल के अहसासों को तू कभी समझा नहीं

अब यूँ झूठ मूठ का रूठना मनाना छोड़ दे

यूँ उल्फ़त का सबब हमसे कहा ना गया

हमे विरह की पीड़ा से तू जलाना छोड़ दे

जुबां की रंगत, नज़रो की इनायत भी रही

क्या तुम्हारे ग़म में हम ये ज़माना छोड़ दे

यूँ आईने पे आईना वो चेहरे में लगाये हुए

क्या हम चेहरा आईना पे दिखाना छोड़ दे

जुबां का तीर दिल को छलनी किये देता हैं

क्या इसी बात पे हम दिल लगाना छोड़ दे

दिल को लगाया "आकिब" तूने उस बेवफ़ा से

हमको वो सताते, तो क्या मुस्कुराना छोड़ दे।।


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