किसे कद्र हैं दिल के ज़ज़्बात की
किसे कद्र हैं दिल के ज़ज़्बात की
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हमारे- तुम्हारे ख़यालात की
किसे कद्र हैं दिल के ज़ज़्बात की
हुआ आइना रूबरू भी मेरे
तमन्ना बहुत थी मुलाक़ात की
बहारों ने मिलकर उजाड़ा मुझे
खिली कब कली मेरे जज़्बात की
मैं हाथों को अपने न फैलाऊंगा
नहीं चाहिए ज़ीस्त ख़ैरात की
मिरे घर की छत ले ग़यीं आँधियाँ
भला क्या ख़ता इसमे बरसात की.
मुहब्बत का दुश्मन ज़माना है हुआ
कद्र उसको नहीं रब की सौग़ात की
कोई तो मुझे भी लगाये गले
करे क़द्र कोई तो जज़्बात की।