बोझ गम का उठा नहीं सकता
बोझ गम का उठा नहीं सकता
बोझ गम का उठा नहीं सकता। दर्द अपना बता नहीं सकता।
इश्क़ का रोग जो लगाया है, आईना भी छिपा नहीं सकता।
ज़िंदगी में मुश्किलें कितनी हो, हौसलें को डिगा नहीं सकता।
दर- ब - दर ठोकरें मिली सबसे, मुफ़लिसी को भुला नहीं सकता।
बाद मरने के दफ़्न हूँगा यही, मुल्क़ को छोड़ जा नहीं सकता।
रात में जाग - जाग के रोया, हाल - ए - दिल बता नहीं सकता।
प्यार अनमोल है हिफ़ाज़त कर, टूटा तो फिर बचा नहीं सकता।