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दिल की दुनिया में मुहब्बत के सिवा

दिल की दुनिया में मुहब्बत के सिवा

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तू बता खुद ही जवाब होकर मेरी मुहब्बत का क्यूँ सवाल किया

तुझको पता है, दिल की दुनिया में मुहब्बत के सिवा कुछ भी नही


मुझसे पूछे है ज़ामना कि कौन है वो जो तेरी ये हालत कर गया,

रूह बोली कि दिल की दुनिया में मुहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं 


जाने कौन है जो हाथों में खंज़र मेरे नाम का है लिए फिरता 

दिखते सब दोस्त हैं,निभाएँ रंजिश किया ऐसा कुछ भी नहीं


तेरे एतबार-ए-मुहब्बत के लिए सनम क्या काफी नहीं इतना 

तू ही धड़कन है तेरे बगैर मेरे हमनवा ज़माने में कुछ भी नहीं


हरपल सजा सा है,गम के सागर में कुछ इस कदर दिल खो गया 

जबसे हुआ दूर सनम ज़िन्दगी में उदासी के सिवा कुछ भी नहीं


क्यों चल दिए भला यूँ मूँह फेरकर ,सनम देखकर हमें रोता 

सच्चे आशिक हैं तेरे ,चाहत में आँसुओं के सिवा कुछ भी नहीं।



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