प्रेम और बलिदान की गाथा
प्रेम और बलिदान की गाथा


उन्मुक्त प्रीति कान्हा उन्मुक्त भाव राधा।
चाहा तुम्हें सभी ने मन राधिका ने साधा ।
माधौ का दिल फँसा है, राधे की सादगी में,
ख्वाबों में रम गया है, री! रूप उसका सादा।
हूँ उससे रू-ब-रू मैं जब आईने में देखूँ,
री! किस तरह से देखूँ मैं शुक्ल चाँद आधा।
नैना झुके- झुके से, साँसें रुकी -रुकी सी
अल्फ़ाज़ थे नशीले, था जाने क्या इरादा।
पहले भी लोग 'नीलम' थे ज़िंदगी में आए,
लेकिन हमें रुलाया उसने सुनो ज़ियादा।