प्रेम गीत
प्रेम गीत
"मंद मंद रक्त बहता ये, अनुराग की कैसी क्रीड़ा है,
प्रश्नो से यूँ विचिलित मन, ये स्नेह है या कोई पीड़ा है ।"
नील पुष्प-सा तेरा अंग, चंचल पग का साज बनूँ,
राग छेड़ा मुख पर पिया, मैं प्रेम रथ का ताज बनूँ ।
अंग अंग मोहे लग जा तू, साजन की आग बुझा जा तू,
मोहे प्रेम चढ़ गयो, जा न तू जोगी, मन की प्यास बुझा जा तू।
राह देख बगियाँ में मीत, जब चिलमन सारी ढक जाए,
श्वेत रंग तू लाल यूँ कर, सिंदूर में शोला जग जाए।
ओढ़ मेघ तेरे माथे पर, वर्षा प्रतिदिन सवर जाए,
कमल खिले, बालो में, तब हर मोर नृत्य भी थम जाए।
छाया नग्न और वस्त्र-हिन् , मैं तेरे देह की लाज बनूँ,
राग छेड़ा मुख पर पिया, मैं प्रेम रथ का ताज बनूँ ।
रंग सह जब खेले तू, विभिन्न रंग तुझे छेड़ जाए,
इंद्रधनुष के सप्त रंग प्रीत, छिन-भिन्न तब हो जाए।
बूँद बूँद शीतल है किन्तु, प्रेम की रीत पुरानी है,
जल से तू मने न नेहला, तेरी लार में बीती जवानी है।
ले सात फेर धीमे-धीमे, श्रृंगार सुनहरा हो जाए,
रातभर है मणिबन्ध, प्रेम लीला अब न हो पाये।
ह्रदय के भीतर घाव तेरे, मैं स्नेह से रोज़ इलाज करूँ,
राग छेड़ा मुख पर पिया, मैं प्रेम रथ का ताज बनूँ ।
शहद सुखन ये होठ मीत, क्यों प्रणय लोभ से वंचित है,
कोयल-सा कोमल कंठ मेरा, गाये अनुराग के गीत है।
श्वाश सरीखे औजल ओज़ल, विचित्र ये आभास तेरा,
तेरे केस में उलझी ग़ज़लो से, कैसा ये परिहास मेरा।
रोम-रोम जलता दीपक प्रेम का, प्रेम की प्रेमी कौन बता,
प्रेम से प्रश्न उत्पन्न है, प्रेम स्वयं को न पता।
प्रेम के भाती ह्रदय राज्य पर, तेरे संग में राज करूँ,
राग छेड़ा मुख पर पिया, मैं प्रेम रथ का ताज बनूँ ।