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Goldi Mishra

Drama

5  

Goldi Mishra

Drama

२.खेत की धूप

२.खेत की धूप

2 mins
25




ठिठुरन में बैठी मैं रास्ता इनका तकूँ,

देखूँ राह कब आए वो मैं एक टक उन्हें निहार लूं,

धर के पुठरिया दूर वो आते दिखे,

पल्ला धीरे सर को गया नयन ये झुके से थे,


ये सहमापन दहेज की पूंजी सा था,

मेरा था पर हक इस पर उनका था,

एक अरसा हुआ घूंघट के पार इन्हें देखे,

चूल्हे चौके को भूल कुछ इनकी सुने कुछ अपनी कहे,


बंधे एक धागे से पर गांठ सी लगती है,

एक छत की छाँव है मगर धूप उन्हें और छाँव मुझे मिलती है,

इनके लिए सुबह की ठिठुरन और रात की चुभन मंजूर है,

ये कह दे कुछ तो हर शब्द श्रृंगार सा कबूल है,


सखियों ने रचाई मेहँदी जो मिट गई बिन पिया की होए,

ये ठंडक  ये अगन अब साथ ना दे,

मैं पिरोती जाऊं मोती आस के ना जाने क्यूं धागा फिसल जाता है,

उनकी संगिनी हूं मगर साथ धूमिल हो जाता है,


कोशिश थोड़ी उनकी थोड़ी मेरी है,

 ये डोर थामी मैंने थोड़ी हिस्से उनके है,।।




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