कविता
कविता
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झेलने दो सच मुझे
तुम झूठ से बहलाओ मत,
जितना चाहे दर्द दो,
ज़ख्मो को तुम सहलाओ मत...
समझना चाहो तो डूबो
तुम भी मेरे साथ में,
बैठ कर साहिल पे तुम
गहराइयाँँ बतलाओ मत...
धूप को पीने दो
अपने जिस्म का थोड़ा लहू,
जीतना है खुद चलो,
तुम रास्ता दिखलाओ मत...
चूमेगी कदमों को मंज़िल
सिर झुकायेगी कज़ा...( मौत)
सीना है फौलाद का
तीरो से तुम घबराओ मत...
छोटे बच्चों को ना रोको,
खेलने दो रेत में
पाक रहने दो उन्हें,
अपना गणित सिखलाओ मत...!