भीगा मौसम खोये मेरा मन
भीगा मौसम खोये मेरा मन
आज यूँ ही किन्हीं यादों में गुम है
उमड़ते हुए बादलों की आवाजाही मे गुम है
गली में खेलते हुए बच्चों के खेलों में गुम है
अपने जीवन से जुड़े हर एक पहलू में गुम है।
हल्कि सी मुस्कराहट अधरों में महकने लगी है,
दूर बादलों में बिजली चमकने लगी है
बहुत लुभावना सा सब कुछ प्रतीत हो रहा है,
बादलों की गर्जन में भी संगीत महसूस हो रहा है।
रिमझिम बारिश की बूंदें, धरा को स्पर्श करने लगी है
मिट्टी की खुशबू ये स्पष्ट कर रही हैं,
काले-काले बादल अंगड़ाई ले रहे हैं,
बिजली के साथ मिलकर रास लीला कर रहे हैं।
पेड़ो की डालियाँ भी झूम रही हैं
पत्तियों के साथ मिलकर अटखेलियां कर रही हैं,
हवा मस्तानी गा र
ही है,प्यार भरे मौसम के राग सुना रही है,
छोटी -छोटी कोपलें खिल रही है, जाने क्या कुछ कह रही हैं।
कहीं प्यार का इज़हार है तो कहीं इकरार का इंतजार है,
कहीं अनकहीं सी तड़प है तो कहीं बातों में खनक है,
कहीं बारिश में भीगने की अपनी ललक है,
तो कहीं कीचड़ में फ़िसलने की अलग ही चपत है।
भीगे-भीगे वातावरण में अपना ही नशा है,
साथ पकोड़ी और चाय का देता मज़ा है,
एक रोमांटिक सा गाना माहौल को और सज़ा देता है,
रिमझिम फुहारों के साथ -साथ
यादों का झरोखा भी तन-मन और
आँखों को हर्षोउल्लास से भीगा देता है।
ठंडे-ठंडे मौसम में,
अन्तर्मन भी ठंडक से हिलोरें लेने लगता है
बारिश मे भीगने का अलग ही मज़ा है।