ऐसे मैं मन बहलाती हूं
ऐसे मैं मन बहलाती हूं
ऐसे ''मैं'' मन बहलाती हूं,
जब' ऊब 'सी जाती हूं,,
निहार अपने 'पौधों' को...
जी भर मुस्कुराती हूं।।
ऐसे ''मैं'' मन बहलाती हूं,
थक कभी जो जाती हूं
बच्चों संग बैठ जाती हूं,
सिर रख उन की गोद में
नई ऊर्जा पाती हूं।।
ऐसे "मैं" मन बहलाती हूं,
जब कभी "पतिदेव'' से
नाराज़ होती हूं,
चहरे पर गुस्सा, दिल में
प्यार रखती हूं,
पास जब वो आते हैं,
हौले हौले मान जाती हूं।।
ऐसे " मैं" मन बहलाती हूं,
खुश जब बहुत होती हूं,
खाने में कुछ अलग बनाती हूं,
खाता देख सबको,
आत्म संतुष्टि पाती हूं।।
ऐसे " मैं" मन बहलाती हूं,
दर्दे दिल जो कभी उठता है,
बंंद कर अपनी आंखों को,
नगमें पुराने गुन गुनाती हूं।।
ऐसे "मैं" मन बहलाती हूं,
जब अकेले होती हूं,
गाने जोर से बजाती हूं,
भाड़ में जाए दुनियादारी,
अपने आप में मस्त हो जाती हूं।।