तुमसे मुहब्बत
तुमसे मुहब्बत
तुम्हें अपनी सोच में यूं आता देख मुस्कुरा पड़ती हूं मैं,
तुम्हारे कदमों की आहट सुन संभलने लगती हूं मैं,
तुम्हारे अक्स को अपनी आंखों में छुपा पलकें मूंद लेती हूं मैं,
तुम्हारे स्पर्श को महसूस कर, खुद को भुलाने लगती हूं मैं।
ये कैसा नशा मुुझ पर तुम्हारा होने लगा है,
नींद में हूं पर , बांहों में तुम्हारी झुमने लगी हूं मैं
मेरी सोच में, मेरे ख्यालों में छाने लगे हो तुम,
ये कैसा मंजर है हर तरफ़ नज़र आने लगे हो तुम।
सजती नहीं थी मैं पहले, अब खुद को अलंकृत करने लगी हूं मैं,
ख्वाबों में भी जाग कर, खुद को निहारने लगी हूं मैं,
लालीमा सी छाई हुई है मेरे रूप रंग में,
ये तेरी मुहब्बत है, जिसे महसूस कर निखरने लगी हूं मैं।
ख्वाबों में ये हाल है, तो हकिकत क्या होगी ,
तुमसे मिलन की वो पहली घड़ी क्या होगी,,
महल तेरी मुहब्बत का, मेरे हृदय में सजीव हो चुका,
ये इक तरफा प्यार कि मंजिल जाने क्या होगी।