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Sudershan kumar sharma

Romance

4  

Sudershan kumar sharma

Romance

गजल(दर्द)

गजल(दर्द)

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रात को कह दो, जरा धीरे गुजरे मिन्नतों के बाद दर्द सोने गया है, 

देख कर सपने में उनकी सूरत आज जी भर कर रोया है। 


अपने दर्द भुला दिए, उनके दर्द की खातिर ,घाव अपने याद न रहे

देख कर उनका छलनी दिल, न जाने कितने घावों को आँसूओ से धोया है। 


न जाने मेरे दुख दर्द का कैसा असर हुआ उस पर

दूर से देखकर मुझको उसने मालीन चेहरे को फिर से धोया है। 


मैं रोना चाहता था खूब रोना चाहता था, आज फिर जी भर कर सोना

चाहता था लेकिन पा लिया जिसे मुद्दतों खोया था। 


देख कर उसकी बेबसी जो किसी को खो नहीं सकता था,

और उसका हो भी नहीं सकता था, सारा आलम आज फिर रोया था।


आज फिर अपनी दास्ताँ सुनाने वो आया, फिर से अपना प्यार जताने आया

 एक बार फिर से रूलाने आया था, देख कर उसकी दुर्दशा अपना ही मन भर आया था। 


सच कह गया बदला नहीं हूँ मैं, मेरी भी एक कहानी है बुरा बन गया मैं,

सब अपनों की मेहरबानी है, यही कह कर लुप्त हो गया था 


सुना भी कुछ नहीं सुदर्शन कहा भी कुछ नहीं

पर बिखरी हुई जिंदगी की कशमकश में यही कह गया, 


टूटा भी कुछ नहीं बचा भी कुछ नहीं यही कह कर रोया वो रात को,

कह दो जरा धीरे गुजर रात बड़ी मिन्नतों के साथ आज दर्द सोया है। 



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