सच्ची दास्ताँ
सच्ची दास्ताँ
सच जरा सा हमने सुनाया तो बुरा मान लिया,
हक अपना आजमाया तो बुरा मान लिया।
लाख पर्दे में जिन्हें छुपाया था उम्र भर,
आइना सच का दिखाया तो बुरा मान लिया।
दूर होंगे शक के दायरे, यही सोच कर,
हक अपना आजमाया तो बुरा मान लिया।
मिन्नतें आपने की थीं गजलें कुछ सुनाओ,
शेर सच्चा , सुनाया तो बुरा मान लिया
चन्द गिले शिकवे की बातें खुद जताने लगे,
खत हमने रंगीन दिखाया तो बुरा मान लिया।
खुद ही खुद की बड़ाई सुनाते रहे हर पल,
पर्दा सच का जब उठाया तो बुरा मान लिया।
ताउम्र उठा कर चलते रहे जिन्हें हम,
आज जमीन पर बैठाया, तो बुरा मान लिया।
भूल गए जो कुछ भी किया उनके लिये,
सुदर्शन एहसास थोड़ा सा करवाया तो बुरा मान बैठे।