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Sudershan kumar sharma

Others

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Sudershan kumar sharma

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गजल (हौसला)

गजल (हौसला)

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गम को भी सहते रहे मुस्करा , मुस्करा कर के, 

नहीं फायदा बेवजह खुद को रुला, रुला के, 


जिन्दगी गुजर रही है, पल दो पल निकल कर के, 

क्या फायदा मरज को बढ़ा बढ़ा कर के। 


दिल तो टूट चुका है, अपनों को मनाते मनाते,

क्या फायदा हुआ यूँ ही वफा निभा, निभा कर के, 


रोये इतना कि इजहार नहीं कर सकते,

जुदा एक दूसरे से हो कर, कर ,के। 


मंजिल तो तभी मिलती है सुदर्शन अगर बढ़ते रहें

हौसला बढ़ा बढ़ा कर के, 


हम ने तो रोका नहीं किसी को

अगर मिलता रहा कोई वायदे निभा निभा करके। 


रूकती नहीं रोकने से किसी की मंजिल,

अगर चले कोई सच्चे दिल से ,वायदा कर कर के। 


पाँव रखो मंदिर मस्जिद में हमेशा

मगर सर भी तो रखो झुका झुका, कर के। 


रख इज्जत, व आबरू सभी की सुदर्शन,

हाथ मिला, मिला कर के। 



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