फिर रंग मंच में ये ठहाके कैसा है। फिर रंग मंच में ये ठहाके कैसा है।
मेरे बचपन को अपना समझ, खुशियों की झोली भर देता है। मेरे बचपन को अपना समझ, खुशियों की झोली भर देता है।
किसी दुर्घटना वश आकर फँस गए थे वे भी अब मुस्करा रहे हैं, किसी दुर्घटना वश आकर फँस गए थे वे भी अब मुस्करा रहे हैं,