पिता
पिता
अपनी "मेहनत की कमाई" परिवार पर हंसते-हंसते लुटा देता है,
अपनी मेहनत की कमाई परिवार पर हंसते-हंसते लुटा देता है,
जी हां बात ही ऐसी है जब वह मुश्किलों में भी मुस्करा देता है।
खुद की ख़्वाहिशों को मारकर हमारी पूरी करा देता है,
कड़कती धूप हो या बरसाते बादल वह अपना साया बना देता है।
जी हां बात ही ऐसी है जब वह मुश्किलों में भी मुस्करा देता है।
घर को घर बनाने में हर जोर लगा देता है,
अपनी सारी कमाई मेरी पढ़ाई में लुटा देता है।
मेरे बचपन को अपना समझ, खुशियों की झोली भर देता है।
जी हां बात ही ऐसी है जब वह मुश्किलों में भी मुस्करा देता है।
कैसे कहे वह कि मुझसे अब कोई उम्मीद मत रखना,
हमारे खातिर वह जी जान लगा देता है।
अरे !
वह पिता ही है, जो सब समझता है,
सारी उमर लगा कर अपनी हमें इनसान बना देता है।
जी हां बात ही ऐसी है जब वह मुश्किलों में भी मुस्करा देता है।