बनकर सपनों का अन्वेषी निज, मन को ठगता मैं आया। कविता का वरदान विधी ने बनकर सपनों का अन्वेषी निज, मन को ठगता मैं आया। कविता का वरदान विधी ने
हम बारिश का सैलाब हैं क्यारियों में सिमटे नहीं जाते। हम बारिश का सैलाब हैं क्यारियों में सिमटे नहीं जाते।
बेटी के सिर पर हाथ रख कर यही कह पायी" मेरी बहादुर बच्ची बेटी के सिर पर हाथ रख कर यही कह पायी" मेरी बहादुर बच्ची
ये इंसान भी अजीब है माँगने चला है समंदर और लेके खड़ा है बाल्टी ये इंसान भी अजीब है माँगने चला है समंदर और लेके खड़ा है बाल्टी
पत्थरों से निकल झरना बन विस्तार पाऊँ गुनगुनाती सरिता बन गहरे समुद्र से मिल लूं। पत्थरों से निकल झरना बन विस्तार पाऊँ गुनगुनाती सरिता बन गहरे समुद्र से मिल लू...
कौन बिछाए झोली हो माता कौन रे पाए दर्शन कौन बिछाए झोली हो माता कौन रे पाए दर्शन