हम बारिश का सैलाब हैं क्यारियों में सिमटे नहीं जाते। हम बारिश का सैलाब हैं क्यारियों में सिमटे नहीं जाते।
कैसे ये वक़्त बीत गया और बचपन को साथ ले गया। कैसे ये वक़्त बीत गया और बचपन को साथ ले गया।
पड़ी थी जो बेड़ियां मेरे मास्तिषक पर, ले गयी हो जैसे सब कुछ भंवर में। पड़ी थी जो बेड़ियां मेरे मास्तिषक पर, ले गयी हो जैसे सब कुछ ...
तो कहीं कायदों के फायदे की रिवायत ने इंसान को बहका रखा है तो कहीं कायदों के फायदे की रिवायत ने इंसान को बहका रखा है
इस क्रांति से बनेगा उनके सपनों का भारत। इस क्रांति से बनेगा उनके सपनों का भारत।
करूँ कुछ मन का प्रसन्न होकर जीऊँ मैं कठपुतली। करूँ कुछ मन का प्रसन्न होकर जीऊँ मैं कठपुतली।