मैं संजीदा, मैं अल्हड़ भी कभी यादों में, कभी बातों में। मैं संजीदा, मैं अल्हड़ भी कभी यादों में, कभी बातों में।
हम बारिश का सैलाब हैं क्यारियों में सिमटे नहीं जाते। हम बारिश का सैलाब हैं क्यारियों में सिमटे नहीं जाते।
कुछ अस्पष्ट सी रेखाएँ कौंधा करती हैं अक्सर… कड़कती बिजली की तरह, मेरे दिमाग़ के कैनवस पर कुछ अस्पष्ट सी रेखाएँ कौंधा करती हैं अक्सर… कड़कती बिजली की तरह, मेरे दि...
पियत को पानी और ऊपर से खड़ी चढ़ाई पियत को पानी और ऊपर से खड़ी चढ़ाई
नदी से तैरते एहसास कलम से कुछ लिखने की प्यास वो नायक का परदेशी रुआब। नदी से तैरते एहसास कलम से कुछ लिखने की प्यास वो नायक का परदेशी रुआब।
बिजली कड़की याद आ गए दास तुलसी बिजली कड़की याद आ गए दास तुलसी