कैसे मनाऊँ रुठ गया सजन जो नदिया पार। कैसे मनाऊँ रुठ गया सजन जो नदिया पार।
मैं संजीदा, मैं अल्हड़ भी कभी यादों में, कभी बातों में। मैं संजीदा, मैं अल्हड़ भी कभी यादों में, कभी बातों में।
मैं जन गण की प्यास, बुझा ल्याऊं खुशहाली। मैं जन गण की प्यास, बुझा ल्याऊं खुशहाली।
कलकल करती नदिया जो कल जो थी, कभी सूखी तो कभी तट तोड़ है बहती कलकल करती नदिया जो कल जो थी, कभी सूखी तो कभी तट तोड़ है बहती
पत्थर होता है वह अपना अस्तित्व एक साथ नहीं खोता बस धीरे धीरे नदिया की धारा में पत्थर होता है वह अपना अस्तित्व एक साथ नहीं खोता बस धीरे धीरे नदिया ...
वर्षा की बौछार क्या पड़ी, प्रीतम का विरह असहाय हो गया। वर्षा की बौछार क्या पड़ी, प्रीतम का विरह असहाय हो गया।