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Satyawati Maurya

Tragedy

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Satyawati Maurya

Tragedy

ढूंढे से मिले न उसका ठाँव

ढूंढे से मिले न उसका ठाँव

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नदी किनारे बसता था इक गाँव

अब ढूंढे से मिले न उसका ठाँव।

कलकल करती नदिया जो कल जो थी,

कभी सूखी तो कभी तट तोड़ है बहती।


इंसानों ने अपने- अपने मतलब यूँ साधे,

रूठी बेतवा, तापी, कोसी, गंगा, कावेरी ।

जल बिन पुश्तें कहो तो कैसे पनपेगी,

तुम को ही होगी जीवन जीने की दुश्वारी।


सुन लो मेरे आर्तनाद को ओ मूर्ख मानव

वरना धरती पर देखोगे हर ओर बेज़ारी।




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