STORYMIRROR

Satyawati Maurya

Inspirational

4  

Satyawati Maurya

Inspirational

स्व निर्मिति

स्व निर्मिति

1 min
192


उठाया हाथ एक माटी का लोंदा

कुशल चितेरे ने गढ़ दी सुंदर -सी नारी।

सुन्दर चेहरा, सुघड़ देहयष्टि

सुन्दर मन और बनाये नैन कटारी।

ममता, प्रेम और वात्सल्य दिया ,पर

विह्वलता, सन्ताप से भी आकण्ठ भरी।

जैसे-जैसे उम्र उसकी बढ़ती गई ,

बिटिया बन पिता की छाया में आई।

संस्कार, स्नेह, शिक्षा फिर उसने

उनके मन के अनुरूप पाई।

किशोरी बनने की सीढ़ियों पर चढ़ते 

संग भाई की पैनी निगरानी पाई।

हो गई नवयुवती सुघड़ सुंदर जब

कन्यादान में पति को थमा दी कलाई।

उस घर के रिवाज़ थे कुछ अलग

इस घर के रिवाज़ भी मन से अपनाई।

अब ढल रहा उसके उम्र का सूरज

हाँफती है चलते हुए, सोती कि खाँसी आई।

घर के सबको होती है तब खीझ बड़ी

उनके जीवन में खलल मुझसे जो आई।

न जन्म अपने मन का ,न जीवन ही अपना

लगता स्त्रियाँ बन कठपुतली जग में आई।

पर तुम नहीं कठपुतली किसी की मान लो

माझी बन जीवन नैया की तुम्हें करनी है उतराई!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational