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Satyawati Maurya

Inspirational

4.5  

Satyawati Maurya

Inspirational

उर्वर कोख ,,,,

उर्वर कोख ,,,,

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हाँ, ये ज़ेवर हैं हमारे,

शर्म,हया ,धीमी हँसी,

ख़ामोश पदचाप

नैनों में काजल,

मांग सिन्दूरी,

माथे पे बिन्दिया

हथेली में चूड़ी

पैरों में पायल

और बदन भर कपड़े।

फिर क्यों तार- तार

होती रही हैं,

अबोध बेटियाँ

नवोढ़ा वधुएँ

और पूरी स्त्री जाति ही!

तब शर्मोहया 

क्यों खो जाती है

तुम्हारी ही लोलुप निगाहों से?

जब कोई मादा

अकेली नज़र आती है।

तो छूने से पहले उस बदन को

अपनी रूह से ईश्वर और ख़ुदा 

को याद करना,

उसमें भी जान है,

उसकी भी भावनाएं हैं,

उसकी भी इच्छा -अनिच्छा है

इसको भी जानना।

तुम पुरुष हो तो 

वह भी स्त्री है यह मानना।

पूर्णता प्राप्त करनी है 

तो रिश्ते की गरिमा रखना

कुछ और नहीं तो 

उसे भी ईश्वर का 

एक सृजन समझना 

जिसके न होने से 

तुम्हारा ही अर्थ खो जाएगा

अधूरे रहोगे तुम सदा के लिए।

तुमसे न होगा अकेले नव सृजन

शिशु के लिए सुरक्षित उर्वर 

कोंख का सहारा लेना ही होगा।

जहाँ से पैदा होंगी 

दुर्गा,शक्ति,चंडी ,चामुंडा ।

जो स्वयं की रक्षा भी करेंगी

और दुर्जनों का समूल नाश भी ।






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