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Satyawati Maurya

Abstract

4.5  

Satyawati Maurya

Abstract

जीवित समर्पण,,,,

जीवित समर्पण,,,,

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बची है मकरंद की

चंद बूंदें और

सुवास भी अभी।

डाली से विलग

होना और माला में

गुंथना, फिर मुरझा कर

धरा में तिरोहित होना ही

नियति है मेरी।

पर आज सूखती डाली से 

स्वयं ही विमुक्त होकर 

अर्पित सुवासित ही हुआ मैं फूल।

है ,अभी बहुत समय है 

मेरे मुरझाने में।

ओ नन्हें पिपीलक तुम

अपनी क्षुधा बुझा लो।

स्व के अर्पण का यह 

जीवित समर्पण है।

सुना है किसी के काम आना

अंतिम श्वास रहने तक।

भले फिर मिट जाना 

अंदाज़ है ये जीने का जुदा। 


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