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Sunil Kumar

Abstract

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Sunil Kumar

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जाड़े की रात

जाड़े की रात

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कोहरे की चादर से देखो ढकी तराई है 

सूरज की किरणें भी धरती पर न आई हैं।


पहाड़ों पर हो रही है भीषण बर्फबारी 

सर्द हवाओं का सितम भी है जारी।


ठंड के चलते लोग घरों में हैं दुबके 

चौराहों पर अब अलाव नही जलते।


सुकून से कटता न तो दिन न ही रात है 

कितनी बेदर्द पूस की ठंड भरी रात है।


तन ढकने को न कंबल न ही रजाई पास है

इस भीषण ठंड में बस प्रभु की ही आस है।


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