निश्चित कोण,,
निश्चित कोण,,
त्रिकोण,चतुष्कोण,आयतकोण,
पंचकोण,षट्कोण ये सारे कोण
समाहित है रेखाओं के गणित में।
इनकी वास्तविकता यही है कि
ये एक बिंदु से शुरू होकर किसी
एक बिंदु पर या तो मिलते हैं
या उन्हें काटते हुई आगे बढ़ते हैं।
इसमें इंसानी जीवन का बारीक़-सा
दर्शन छिपा है कि बिंदु(शून्य) से शुरू
जीवन चक्र अंततः वृत्ताकार हो जाता है।
बूंद से शुरू होकर पुनः बूंद में
मिल कर ही तो जीवन पूर्णता पाता है।
इसके कोण पल भर
जग में रुकने और फिर
अग्रसरित होने के अबाध चक्र
को रूपांतरित करते हैं।
अर्थात रेखागणित के कोणों में है
जीवन की गहन परिभाषा।
जीवन नहीं होता सरल और सपाट
आते हैं उसमें कोण
उम्र की अवस्थाओं के।
जो हमें बचपन, बालपन, गार्हस्थ्य,
वानप्रस्थ की दहलीज़ के पार ले जाते हैं।
परन्तु उसका अंत एक निश्चित कोण पर
ब्रह्म से एकाकार के बाद ही पूर्णता पाता है।
'बूंद ही बूंद समानी' वाली उक्ति शायद
यहीं स्वयं को प्रमाणित करती है।
