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Amit Kumar

Abstract Romance Classics

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Amit Kumar

Abstract Romance Classics

समझदानी

समझदानी

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बड़ा हिसाब आख़िर छोटे हिसाब से ही बनता है

कोई तो ऐसा होता है जो किसी न किसी को समझता है


सबकी समझदानी का दायरा उतना विशाल नहीं होता

जितना किसी औरत का दिल धड़कता है


मैं बातूनी शायर हु मैं बातूनी शायर हूँ

बातें सिर्फ तेरी ही करता हूँ और एक तू है


जो मुझे बातूनी कहकर मेरा मज़ाक उड़ाती है

तेरी यही अदा शायद मेरे दिल को भी भाती है।


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