पलकों की चिलमन से
पलकों की चिलमन से


लुभाने लगे है वो
अब अपनी खामोशी से मुझे
मैं भी बंद आंखों से अब
छुपकर महसूस करता हूँ उनको
अपने अंतर्मन में कहीं गहरे में
वो भी गुमसुम से अपनी
पलकों की चिलमन से मुझे
घूरने का कोई मौक़ा काश !
ही जाने दे फिर भी अक़्सर
माझी के दरीचों से उनकी यादों के
सिलसिले को याद करके कुछ
पिघल सा जाता हुँ उनके
चेहरे के भोलेपन से और
भूल जाता हुँ उनकी तमाम
भूलों को जिनसे मैं भुला चुका हूँ
अपने को भी अपने से कोसों दूर....