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Amit Kumar

Others

4  

Amit Kumar

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सदक़ा

सदक़ा

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मैं बाहों में

पसरने का आदि नही हूं

मैं क़दमों में

बिखरने का

हुनर जानता हूं

जो लोग मेरी

बात नही मानते

मैं उनकी भी बातें

शिद्दत से मानता हूं

यह अलग बात उनकी

जो सौदागर है

धर्म के जाति के

भाषा के मुबाह्शों के

रंग के भेद के

लिंगानुपात के अनुच्छेद के

सामान्य सी बात को

असमान्य बना देते है

मैं उनकी भी सदाक़त का

हुनर जानता हुं

मतों सहमतों से

जो असहमत है रहते

बातों का शिकवा

जो चुगली से कहते

जो लोन दे रहे है

चन्द काग़ज़ के टुकड़े

और बदलें में ले रहे है

ज़िंदा मांसलता के लोथड़े

जो किसानों के नाम

ज़मीदारों को सुदृढ़ कर रहे है

जिनकी चाटुकारिता से

कर्ज़मंद बेबस लाचार मर रहे है

मैं उनके दिलों की भी

ख़बर जानता हूं

वो खुदा तो नही है

पर खुदा हो रहे है

वो काटेंगे उसको

जो वो बो रहे है

अदावत का सदक़ा

सबको है मिलता

किसी को पहले

किसी को बाद में

आज किसी नरभक्षी

वहशत के पुजारी ने

एक मासूम कुसुम को

कुचल दिया मसलकर

हम नामर्दों के समाज में

महिला हो रही है कुंठित

यह कुठा जो उनको

सौंपी गई है देकर

विरासत की धरोहर

एक दिन लौटाएगी वो

उन हिजड़ों को

जो बन रहे है मर्द

मैं ऐसे दोगलों की

नस-नस जानता हूं........

तुम किसी को भी मानो

न भूलों मग़र इंसानियत

घर के बाहर भी अक़्सर

होता है एक घर

वो घर भी किसी मन मन्दिर शिवाला

किसी का है मस्ज़िद वो किसी का गिरजा

कोई सज़दा करता है 

उसे बना गुरुद्वारा

कोई भूल बैठा 

अपनी माँ का ही चेहरा

मग़र मैं अपनी माँ बहन का

चेहरा जानता हूं जो बसता है

हर औरत के चेहरे में

हर ममता के मंदिर में

मै ऐसी दुआओं की

बस एक नज़र चाहता हूं

बस एक नज़र चाहता हूं.......

         


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