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Amit Kumar

Romance Classics Inspirational

4  

Amit Kumar

Romance Classics Inspirational

सदा के लिए....

सदा के लिए....

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तुम एक दुआ हो

मेरे नसीब की

मैं एक गुनाह हूँ

तुम्हारे नसीब का

यही एक वज़ह है

जिसका मैं कर्ज़दार हूँ


और यही एक इरादा है

जो तुमने मुझे दिया है

मैंने तो तुम्हे सिर्फ

रुस्वाइयां ही दी है 

अपने ख़ज़ाने के रूप में

एक तुम हो जिसने मुझे

सर्द मौसम में 

गर्म मकां सी एक 

परत दी है

अपने तमाम ख़ज़ानों के

मुहँ तुमने मेरे 

लिए खोल दिए है


और मैंने तुम्हारे हिस्से की

खुशियाँ भी तुमसे छीन ली है

तुम्ही ने तो मेरी उदास राहों को

ख़ुशनुमा सी एक वज़ह दी है

आज नहीं तो कल

तुम जान ही जाओगी

मैंने तुम्हे ठगा है

ये और बात है


कहीं दिल जानता है

तुम्हे सब ख़बर है

तुम नहीं कुछ कहती

फिर भी अपने सब्र से 

बाहर आकर कभी एक लफ़्ज़ भी

यही सब्र अब तुम 

मेरे हिस्से में भी अता कर दो

और अपने तमाम दुःखो

को मेरे न सही तो 

उस रब के हवाले कर दो

जिसका अक़्स तुमने एक 

मुझ जैसे फ़रेबी में पाया था


मैं वो न बन सका जो

तुमने चाहा था कभी

और तुम वो बन कर रही

जिसकी क़दर मैं न 

जान सका अब से पहले कभी

तुम्हारा रब सच्चा है

वो मुझसा झूठा नहीं है


इसीलिए तुमसे कहता हूँ

बस एक बार और 

उसका यकीं कर लो

और अपने आप को फिर से

उसी की आराधना में

इस बार अपने हित के लिए

अपने को संवारने के लिए

अपने को मुस्कुराहट देने के लिए

हो सके तो मुझ जैसे

दोष को अपने से 

सदा के लिए दोषमुक्त कर लो


मेरी बुराइया का मैं ही रहबर बनूं

तुम अपने हौसलों की उड़ान में

एक बार फिर उम्मीद के पंख से

रंगीन इंद्रधनुषी रंग धर लो...

रंगीन इंद्रधनुषी रंग धर लो...


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