शिद्द्त
शिद्द्त
बात कहने से ज़्यादा समझने की है
मेरी शौहरत मेरी दौलत
बस आपकी मुस्कुराहट जितनी सी है
मैं ताउम्र शुक्रगुज़ार रहा हूं
उन तमाम हादसों का
जिन्होंने सिखाया है
ज़िन्दगी दो पल जितनी सी है
उनका तस्सव्वुर जब भी मुझे
सताने को हुआ मैंने
इस दिल से कहा
क्या सादगी बस इतनी सी है
वो तो रिश्तों को भी
दांव पर लगाते रहे
खुद की खुशी के लिए
सबको यूँही आजमाते रहे
जब उम्र ढलने लगी तो
खुदा याद आने लगा
और वो कहने लगे
बन्दगी अब इश्क़ की है
ख़ैर खुदाया मुआफ़
हर उस शख़्स को
जिसने वफाओं का सिला
बेवफ़ाई से दिया
वो मासूम क्या जाने
उसकी ख़ता कितनी सी है........
मैं अमित तुमसे अगर
एक बात कहूं
तुम यह उनको कह देना ज़रा
मुल्क़ और माँ की सदा
क़ब्र से भी ले आएगी उन्हें
बानगी जिनके दिलों में
शिद्द्त से भरी
पाक़ - साफ गंगाजल की सी है........