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Paramita Sarangi

Romance

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Paramita Sarangi

Romance

वर्षा और मैं

वर्षा और मैं

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झरोख़े को खोल दिया

भीतर आ गये तुम

किश्तों में छू गए मुझे

भीग रही थी मेरी

अंजली का आकाश ।


झरोख़े के बाहर 

तुमने दिखाया था बूँदों को

गिर रहीं थीं एक दूसरे को

छूने के लिए


तुम तो समुद्र में मिलोगे

बोलकर , ले गए बचपन की 

कागज की नाव को।

रह गई मैं

आधे अधूरे स्वप्न के साथ

ढूँढ रही थी,

उस रात की कहानी में

भीगे हुए शब्दों को।


नि:शर्त प्रेम है मेरा

निर्विकार तुम

अगर चाहो, परीक्षा ले लो

इसी रात की,

नहीं यहाँ कोई प्रतारणा

न कोई स्वप्न 

अगर है तो सिर्फ एक कहानी 

प्रतीक्षा की !इंतज़ार की !


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