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Paramita Sarangi

Romance

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Paramita Sarangi

Romance

konark

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इस धरती की आत्मा में

प्रस्तर कविता तुम

जर्जर हो सकता है मुहूर्त

मगर आज भी तुम पूर्ण यौवन

कितनी कोशिश वक्त की

फिर भी तुम्हें झुका नहीं सका


दूर क्षितिज से आनेवाली 

रक्तिम आभा

विभक्त कर देती है

उस नज़र को जो

दिखती है ,मिलन के लिए आतुर गणिका की आँखों में

और, इंतजार की मधुरता लिए

किसी एक प्रेयसी के मन में


उड़ने को तत्पर तुम

कोशिश तो की होगी 

फिर भी कहाँ उड़ सके

प्रस्तर के हृदय में 

प्रेम का समुद्र,और समुद्र किनारे ,

रेत की कोशिश

भाराक्रांत काया में

अनजाने ओड़िआओं के स्पर्श 

और खुशबू पसीने की


पत्थर हो तुम

फिर भी साक्षी

प्रेम की

मिलन की

प्रतीक्षा की

विरह की

छुपी हुई है एक शून्यता

तुम्हारे भीतर


काश! पकड़ सकती

मुट्ठी से फिसलती रेत को

बना सकती एक चित्र तुम्हारा

किसी चित्र-पटल के ऊपर 

मगर संभव कहाँ !!!


संगीत का आठवाँ सुर हो तुम

नया कोई एक रंग कल्पना का

कालिदास की कलम को 

इंतजार है नूतन काव्य का


कल फिर एक नया सवेरा आएगा 

सूरज की रक्तिम आभा 

अधीर है

लज्जा की ओढ़नी से 

निकल कर 

चूमने तुम्हारे माथे को

सबसे पहले।


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