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Paramita Sarangi

Romance

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Paramita Sarangi

Romance

रोजी दास (७)

रोजी दास (७)

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रोजी दास

किसी और पे नहीं

खुद पर रहम कर

यूँ ही अपनी फसानों को

बर्बाद न कर


अलगनी में टाँग कर 

दिन की थकान को

रात को चैन से

गुजरने दे

उलझे हुए ख्वाब को 

मुख्तलिफ शक्ल दे कर

अब बस उल्फत से

गुफ्तगू करने दे


फलसफा कोई और नहीं

बस इतनी सी बात है

शरीर तेरा भी ख़ाक और

मेरा भी ख़ाक है

कहीं यूँ न हो जाए कि

रात को समझते समझते

ख्वाइश ही खत्म हो जाए


चलो अब मैं ऐसा करुं

उन गर्दिश को दर- ब- दर करुं

‘यूँ ही’ कह कर अब तुम्हारे

नादानियों को खत्म करूं 


कौन ढूंढे लफ्ज़ लहेजा को

ज़िक्र बेवफाई के लिए 

‘लुगत’ के दामन से 

अब मैं मेरी कलम की आवारगी

यहीं रहने दूं।


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