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Paramita Sarangi

Romance

4  

Paramita Sarangi

Romance

चलो एक तस्वीर बनाए

चलो एक तस्वीर बनाए

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323


जिंदगी जिंदगी को बुला रही थी

मेरे भीतर के खालीपन में

रात भी थोड़ी थोड़ी

मेरी नींद को चुराने लगी थी 


तुम्हारे भीतर व्याप्त 

रहने की इच्छा

जो अनदेखी थी

जो अनसुनी थी

मेरे अकेलेपन के आतुर स्वर

आकाश को खंड खंड कर

पिघलने लगे थे 

आत्मा की उपत्यका में

एक नदी बहने को आतुर

कितने सालों से

मगर अपने हृदय से उच्चारित

शब्द को न सुन पाने की

मेरी असहायता

ढूँढती रहती थी

मेरी कोई प्रतिकृति को

तुम्हारी आँखों में 


तुम्हारे पदचाप, ठीक 

मेरे हृदय की धड़कन जैसे

तुम आ रहे हो न

शून्य इलाके में स्वप्न जैसे

मेरा अनुभव तुम्हारे साथ,

तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ

देखते ..... देखते

बदल गयी थीं तुम्हारी उँगलियाँ 

मेरी हाथों की चूड़ियों में


अपरिमित हमारे संपर्क

सुबह से शाम तक

बिंदु से सागर तक

पृथ्वी से चंद्रमा तक

प्रलय से सृष्टि तक

इस युग से अन्य एक युग तक


चलो कोई तस्वीर बनाएँ 

नीरवता से उभर कर

बहुत कुछ बोलने वाली

रात को लेकर

हाँ, वो ही रात

जो थोड़ी थोड़ी कर 

चुराने लगी थी नींद को मेरी।



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