इश्क़
इश्क़
वो रौशन चाँद जो अभी तस्वीर में है
ख़ुशनसीब वो जिनकी तकदीर में हैं !
उन्हें देखकर लड़खड़ाते होंगे कदम
होश में नहीं होंगे जो लोग होश में हैं !
पागल दिल को कैसे संभाले कोई
उनका लहराता आँचल हवा में है !
वो मर्ज हैं कि तबीब-ए-मेहरबाँ हैं
न दुआ क़ुबूल हो न असर दवा में है !
उसने बस कहा, "तुम अपने हो"
और यह दिल उसका हो गया !
एक आँसू गिरा था पलकों से
सींचा जो मन, उपवन हो गया !
फिर क्यों बेमौसम बादल गरजे हैं
क्यों वो जुगनू उजाले में खो गया !
रूठे हुए ख़्वाब अब लौट भी आ
ऐ टूटे आईने एक बार फिर मुस्कुरा !
पथरीले जज़्बातों के इस दिल में
दरारों से उभर इश्क़ फिर खिल जा !!