हृदय स्पंदन
हृदय स्पंदन
चाँद उड़ा जाता है,
देखो तारों के बगीचे से !
मुरझा के टूटते तारे,
मुरादों के सलीके से !
चाहे भी तो कैसे छुपाए,
पर्दों से हाल-ए-दिल !
बदल बदल कर देखे,
मुखौटे मैंने हर तरीके से !
नज़र आ ही जाता है,
जज़्बातों का आसमान !
कभी झुकती कभी उठती,
पलकों के दरीचे से !
शब्द खो चुके हैं अपना अर्थ
प्रेम भाव व्यक्त करने में असमर्थ !
वक्ष पर शीश टिकाकर प्रिये
तुम अपनी बात कहती रहना !
सुनना ध्वनि मेरे मौन की और
बस अनुभव करना हृदय स्पंदन !