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गीतेय जय

Romance

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गीतेय जय

Romance

इश्क़ की रंगत

इश्क़ की रंगत

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सामने मेरे खुले केशों को बाँध एक लट को खुला छोड़ दिया

फीकी सी जिंदगी में मेरी यूँ तूने शर्बत-ए-इश्क़ घोल दिया !!


बस एक ही बार पूछा था मिज़ाज-ए-मौसम मुझसे तुमने

न सुन सके तुम किस कदर धड़कनों ने बांध तोड़ दिया !!


कोरे कागज पर कुछ रँग ऐसे भरे तस्वीरें साँसें भरने लगी

जो पुकारा नाम हमें गुमान हुआ अपना तुमने बोल दिया !!


तेरी बिंदिया के जैसा ख्वाबों की रातों में टिमटिमाता इश्क़

तख़य्युल में ख्यालों की हवा तेज़ थी और आँचल लहरा दिया !!


जाने मुस्कुराकर देखा था मुझे या देखकर मुस्कुरा दिए

ज्यूँ अहद-के-गुल में तुमने तितलियों का रँग बिखरा दिया !!


आफताब-ए-रू के आगे जुगनुओं की हस्ती ही क्या होगी

जब जब शम्मअ रौशन हुई अफ़साना परवाने का बुझा दिया !!



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