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गीतेय जय

Romance Tragedy

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गीतेय जय

Romance Tragedy

तुम बिन...

तुम बिन...

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तुमने हमने मिलकर

कुछ परिंदे पाले थे,


दिल की शाख पर बैठे

वो लम्हे गुजरते नहीं 


पंख तो है न इनके

फिर क्यों ये उड़ते नहीं !


देखो पर फैलाते हैं

खूब फड़फड़ाते हैं,


मैं और वो पल

तेरे बाद अब

उड़ नहीं पाते हैं !


सिरहाने में पड़ी

यादों की तरह,


तुम्हारी कसमों

वादों की तरह,


अभी अभी टूटे 

ख्वाबों की तरह,


मोहब्बत चाय की तरह

ठंडी होती रहती है !


सूख कर शाख टूट गयी

जिस पर बनाया था

तिनकों से आशियाना...


नहीं आएगी तेरे आने से बहार

तुम अब लौट कर मत आना !


जमाने के साथ

छोड़ा मेरा हाथ


चलते चलते

जाने किस मोड़ से

तू भी मौत हो गयी...


ऐ जिंदगी तू कहाँ खो गयी !!



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