तुम बिन...
तुम बिन...
तुमने हमने मिलकर
कुछ परिंदे पाले थे,
दिल की शाख पर बैठे
वो लम्हे गुजरते नहीं
पंख तो है न इनके
फिर क्यों ये उड़ते नहीं !
देखो पर फैलाते हैं
खूब फड़फड़ाते हैं,
मैं और वो पल
तेरे बाद अब
उड़ नहीं पाते हैं !
सिरहाने में पड़ी
यादों की तरह,
तुम्हारी कसमों
वादों की तरह,
अभी अभी टूटे
ख्वाबों की तरह,
मोहब्बत चाय की तरह
ठंडी होती रहती है !
सूख कर शाख टूट गयी
जिस पर बनाया था
तिनकों से आशियाना...
नहीं आएगी तेरे आने से बहार
तुम अब लौट कर मत आना !
जमाने के साथ
छोड़ा मेरा हाथ
चलते चलते
जाने किस मोड़ से
तू भी मौत हो गयी...
ऐ जिंदगी तू कहाँ खो गयी !!

