मोहब्बत आजाद परिंदा कर दे
मोहब्बत आजाद परिंदा कर दे
एक सपना लिए आंखो में
तेरी ओर देखने की आदत
मुझे महफ़िल में शर्मिंदा कर देती है।
पर तेरी एक मुस्कान ही तो है
जो मेरे जज्बातों को जिंदा कर देती है।
मैं जब खो जाता हूं अजनबियों में
तेरा दामन है जो मुझे चुनिंदा कर देती है।
तुझसे ही बंध कर ये दिल जाना कि
मोहब्बत हमें आजाद परिंदा कर देती है।
तुम कभी मुझे अलग लगती हो।
तो कभी खुद को तुझमें पाता हूं।
जब भी पीछा करता हूं चाहतों का।
तुझ तक ही मैं पहुंच जाता हूं।
अब सीने में तेरे नाम की धड़कन
धक धक धक धक करती है।
तुझको ही याद करता हूं।
चाहे जो भी सरगम गाता हूं।
तुझसे दूर जब भी होता हूँ।
ये दूरी सांसे मंदा कर देती हैं।
तुझसे ही बंध कर ये दिल जाना कि
मोहब्बत हमें आजाद परिंदा कर देती है।