उम्मीद और अन्याय
उम्मीद और अन्याय
जाने अंजाने में साल ये सीख दे गया
किसी को बिन मांगे ही भीख दे गया।
किसी को मुस्कान दे दी बेवजह ही
और किसी को बेआवाज चीख दे गया।
कोई रो रहा है दरवाजे बंद करके
अपनी किस्मत और अपनी मजबूरी पर
कोई रो रहा है दरवाजे बंद करके।
अपनी किस्मत और अपनी मजबूरी पर
और कोई उसको देख कर हंस कर।
उसके दिल में तकलीफ दे गया।
दिलासा दे दे कर सभी लोगों ने
उम्मीद का गला घोंटा है।
अधिकारी नहा रहे हैं मस्ती में
कर्मचारियों का खाली लोटा है।
रख लिए 166 करोड़ कैसे तुमने
क्या दोष है कि ये भाई तुमसे छोटा है।
जब चोरों बदमाशों लुटेरों से
इतनी नफरत करते हो तुम।
फिर भी अपने सवार्थ के लिए
इन्हें क्यूं पैदा करवाते हो तुम।
खुद जब बैठ जाते हो कुर्सी पर
फिर गरीबों को ही तो दबाते हो तुम
झांक कर देखो अपने अंदर
कोई किसान भ्रष्टाचार नहीं करता
झांक कर देखो अपने अंदर
कोई किसान भ्रष्टाचार नहीं करता।
घूस लेते हैं पढ़े लिखे अधिकारी
कोई मजदूर दुराचार नहीं करता ।
दो दिन में जिन्होंने भी अपना
कलेजा बिन रोए कल्पाया है।
याद रखो हर एक ने तुम्हारी
तुम्हारी हरकत का शोक मनाया है।
तुम भी शोक मन
ाओगे इक दिन
दर दर की ठोकरें खाओगे इक दिन।
रावण कंस और दुर्योधन भी मरे थे
तुम भी तो मर जाओगे इक दिन।
तुम्हारी करनी तुम्हारे पीढ़ियों के साथ होगी
उनसे तुम्हारी हैवानियत की बात होगी।
जलाया था तुमने जिसको
गैस से और गरम लोहे से कभी।
उनके जैसे ही तुम्हारे
वंशजों की हालात होगी।
हर मजदूर मरते मरते ये फरियाद करता होगा
मरो तुम भी वैसे जैसे वो मरता होगा।
जीते जी खून चूसने वालो के खून बहने का
उसका रूह भी इंतजार करता होगा।
ये पढ़े लिखे नंगे बेशर्मों का समाज।
मजदूर की मजदूरी खा जाते हैं।
जिनसे मजदूर के बच्चे को दूध मिलता है
उनका ये पान मसाला खा जाते हैं।
जाने किस मिट्टी के बने हैवान हैं ये
अपने पैसे की हवस मिटाने के लिए
ये भूखे का निवाला खा जाते हैं।
उन्नति हो गई है तुम्हारी
जाओ तुम अब जश्न मनाओ
ऊंचे पद पा ही लिया है।
आओ अब हमें और दबाओ
हम भी तुम्हारी हैवानियत तक
अपनी इंसानियत जिंदा रखेंगे।
हराम की नहीं खाएंगे
और अपने जमीर को जिंदा रखेंगे।
घुटते रहेंगे तुम्हारे कारण सामने तुम्हारे
तुम्हारे कर्मो से तुम्हे शर्मिंदा रखेंगे।
तुम्हारे कर्मो से तुम्हे शर्मिंदा रखेंगे।