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PrajnaParamita Aparajita

Tragedy

4  

PrajnaParamita Aparajita

Tragedy

जी ही कहाँ सके...

जी ही कहाँ सके...

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कुछ रिश्तों में आग,              

कुछ ज़ख्मों के दाग,               

और ये ज़िंदगी का बेसुरा राग,

जीने कहाँ देती है......

कुछ नम आखों वाली रातें,         

कुछ लोगों के कड़वी बातें,           

कुछ दिलकश हंसती हंसाती यादें,

जीने कहाँ देती हैं .....

कुछ बिखरे पन्नो की कहानी,        

कुछ तरसाती अपनो की ज़ुबानी, 

;     

कुछ तक़दीरों की मेहरबानी,

जीने कहाँ देती है.....

कुछ गलती जो हो गए,            

कुछ अपने जो खो गए,            

कुछ सपने जो रुला गए,

ये फिर भी जीने कहाँ देती है....      

कुछ सुकून के पलों की ख्वाहिश,      

ना हो पाती वो ख़्वाबों की नुमाइश ,

दिल की बातों की ना कर सके फ़रमाइश, 

और जी भी कहाँ सके...



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