मोहब्बत अधूरी.....
मोहब्बत अधूरी.....
जहां मोहब्बत मुमकिन न था,
साथ का सुकून ना मिलना था,
आसमान और ज़मीन सा रिश्ता था,
वही दिल धड़का बेपनाह आशिक़ी की....
शायद जनम भर का तड़पना लिखा था.....
दिल ने अपने दिल के लिए नासूर बन के बैठा था...
ना किनारा मिलना था ना किनारे पे कश्ती ....
ना सुकून मिला ना सहारा...
फिर भी उसके लिए धड़क रहा मेरा पागल सा दिल...
ना कल था ना कुछ कल होगा.....
ना अपने बने ना पराया कभी समझ पायेंगे...
ना तुम ना और कोई कभी होगा...
ना मुकम्मल ना मुमकिन कह पाएँगे...
तुझे ज़िंदगी ना तुझ बिन ज़िंदा रह पायेंगे .....
शायद सच्ची है तभी तो अधूरी है...