वक़्त ....
वक़्त ....
वक़्त के साथ नजर बदल जाती है
और नज़रिया भी......
वक्त के साथ असर भी बदलता है
और आसार भी ...
ये वक़्त है तभी तो ...
कुछ हम बदलते हैं और कुछ तुम भी.
वक़्त के साथ होश भी आजाता है ,
और मदहोशी भी छाती है
कभी वक़्त के वजह से ठहराव है
तो कभी वक़्त की ठहरेने नहीं देता ....
कुछ हमें और कुछ खुद बदल जाता है.....
वक़्त महरम है और मेहरबान भी
वक़्त सिखाता और छीन भी लेता है ..
वक़्त ख़ुशी भी खामोशी भी
वक़्त सपना भी और वक़्त ही अपना भी ..
ये वक़्त ही तो है........
ये अब भी और ये सब भी
ये है भी और दिखता नहीं भी ....
वक़्त है वक़्त भी
और
वक़्त ही ......!